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18/06/2013  
कहीं जानकर अनजान बने रहने की सज़ा तो नहीं ये...
 

इस देश में जितने भी अपराध हो रहे हैं उनमें से अधिकाशं के मूल में या यूँ कहें की ९५ प्रतिशत अपराधों के पीछे किसी न किसी तरह शराब की भागीदारी होती है.

लेकिन जागरूक जनता और सरकारें कभी भी इस और ध्यान इंगित नहीं करती, कारण लोगों में ९५ प्रतिशत से अधिक लोग शराब का सेवन करते हैं और सरकारों को सर्बाधिक रेवेन्यू (पैसा) इसी शराब से मिलता है. इसलिए कोई भी इस बुराई को बंद करने की बात नहीं करता.
वहीं उत्तराखण्ड में हो रही तबाही पर आंसू तो सभी बहा रहे हैं लेकिन सच का सामना करने की हिम्मत किसी की नहीं. यहाँ टिहरी बाँध सहित नदियों पर बन रहे सैकड़ों बाधों के कारण यहाँ मौसम में बदलाव तेजी से आ रहा है, पहाड़ कमजोर पर रहे हैं और जगह-जगह बाँध बनने से गर्मियों में बहुत तेजी से वाष्पीकरण होने के कारण बादल बहुत अधिक पानी सोख रहे हैं जिस कारण वे बहुत भरी हो रहे हैं, इतनी भारी बादल कहाँ बरसेंगे? और उसी का नतीजा है उत्तराखण्ड सहित सम्पूर्ण हिमालय छेत्र में बादल फटना, भू स्खलन, और बाढ़ का ताण्डव हर साल विकराल से विकराल रूप में सामने आ रहा है. बिकास के नाम पर अपनी पीठ थपथापने वाले नेता हों या पर्यावरण के नाम पर अपनी दुकान चलाने वाले अधिसंख्य लोग कोई भी इस और ध्यान नहीं देता, ना इस बारे में बात करते हैं.
उत्तराखण्ड के तथा कथित पर्यावरण विद भी अपनी अपनी डफली लेकर चल रहे हैं, कोई भी इस बारे में बात नहीं करता की टिहरी बाँध बनने के बाद हो हालत बने हैं उनसे कैसे निपटा जाए? नेता हवाई यात्रा करके बयान जारी करके अपना फर्ज पूरा समझते हैं, आलीशान घरों में रहने वाले, जनता पा पैसा फुकने वाले नेता क्या जाने बदल फटने, बाढ़ और भू स्खलन से क्या तबाही होती है... दूसरों के दर्द से अगर इन्हें कुछ लेने देना होता तो पिछले साल के हादसे से सबक लिया होता, लेकिन किसी ने भी कुछ सबक नहीं लिए और यही कारण है की इस साल शुरू में ही तबाही का मंजर खौफ़नाक रूप इख्तियार कर गया. जिसमे जान माल का बहुत नुकसान हुआ है.
इस बरबादी का खामियाजा जनता भी ही भुगतना पड़ रहा है. जिनके घर बह गये, जिनके अपने पराये बह गये हैं उनसे पूछो क्या होता है तबाही का दर्द. अगर यही सोच और नजरिया रहा तो साल दर साल यही दुहराया जायेगा और जनता को यूँ ही खामियाजा भुगतना होगा....
अभी समय सरकार उत्तराखण्ड के बारे में कुछ सटीक रणनीति बनाकर यहाँ हो रहे एक पक्षीय विकास की गाथा पर पुनर्विचार करे और विकास का विश्व रिकार्ड बनाने से पहले यहाँ की जनता के हितों और उनके जीवन के बारे में भी सोचे. अन्यथा आने वाले कल में क्या होगा इसका आकलन करना मुश्किल होगा... सरकार जन सरोकारों को अपनी जूठी तुष्टि और थोथे बिकास के नाम पर दर किनार नहीं कर सकती हैं... देश का सीमांत इलाका अगर हर साल इस प्रकार की आपदा खामियाजा भुगतता रहेगा तो ये शुभ संकेत कदापि नहीं हैं.

दिनेश ध्यानी की कलम से
उत्तराखंड

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