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06/11/2013  
राजस्थान के बाडमेर में ग्रामीण पर्यटन--मनोहर कुमार जोशी
 

पर्यटन के लिहाज से लगभग अछूते राजस्थान के मरूस्थलीय जिले बाड़मेर में ग्रामीण पर्यटन की व्यापक संभावनाएं दिखाई देने लगी हैं। यहां का हस्तशिल्प, संस्कृति, परम्परागत खान-पान और रेत के टीलों पर लोकसंगीत के स्वर ग्रामीण अर्थ व्यवस्था को सम्बल प्रदान कर सकते हैं।

 पानी की कमी यातायात के साधनों का अभाव एवं कठोर जीवन शैली के चलते तीन चार दशक पहले भले ही इस क्षेत्र की ओर कोई झांकता तक नहीं था, लेकिन हाल के वर्षों में बिजली, कोयला, पेट्रोलियम संसाधनों की उपलब्धता तथा सौर एवं पवन ऊर्जा ने यहां का कायाकल्प कर दिया है। पानी का संकट भी पहले जैसा अब नहीं है। बालू रेत के सुनहरे टीलों पर जैसलमेर एवं बीकानेर के साथ-साथ बाड़मेर में भी आनन्द लिया जा सकता है।

       गर्मियों के मौसम में यह स्थान पर्यटन के लिये भले ही आह्लादकारी न हो, लेकिन सर्दियों की छुट्टियां एवं नववर्ष के स्वागत के लिहाज से यह जगह अतिउत्तम कही जा सकती है। दिसम्बर में पड़ोसी जिले जैसलमेर में पर्यटकों की भरमार रहती है। विदेशी एवं देशी पर्यटक नया साल मनाने यहां आते हैं। इसके चलते होटलों में ठहरना महंगा हो जाता है। रेस्टोरेन्ट में ढंग का खाना भी नहीं मिलता तथा पर्याप्त सुविधाएं भी मुहैया नहीं हो पाती। ऐसे में बाड़मेर में राष्ट्रीय राजमार्ग 15 के समीप हाथीतला में रेत के टीलों का पर्यटक आनन्द उठा सकते हैं। जरूरत है थोड़ा सा इसे प्रचारित करने की।

 

लोकसंगीत एवं नृत्य

      देश विदेश में थार के संगीत को प्रसिद्धी दिलाने वाले यहां के लंगा मंगणियार अपनी कला का जादू बिखेर गृह जिले को पर्यटन के मानचित्र पर बखूबी स्थापित करने में सक्षम हैं। कमायचा, रावण हत्था, खडताल, मोरचंग जैसे अनेक वाद्ययंत्रों में महारथ प्राप्त कलाकार सुनहरी रेत पर अपने संगीत की स्वरलहरियां बिखेरते हैं, तो अनायास हर किसी के मुंह से वाह-वाह निकल पड़ता है। ऐसा ही आकर्षण भवाई, गेर, तेरहताली नृत्य अपने आप में समेटे हुये हैं, जो दर्शकों को दांतों तले उंगली दबाने को मजबूर कर देते हैं।

 

देसी खान-पान

      ब्रेकफास्ट लंच डिनर के लिये जैविक उत्पादों से तैयार खाद्य पदार्थों की यहां कोई कमी नहीं है। यहां के पानी में पकने वाली मूंग की दाल, केर-सांगरी, देसी ग्वारफली, कुंमटिया एवं काचरे को मिलाकर तैयार पचकूटे की सब्जी, देसी बाजरे के खिचड़े का लजीज स्वाद अन्यत्र कहीं नहीं मिलेगा। यदि पर्यटकों की संख्या बढ़ेगी, तो प्रायः लुप्त हो रही देसी बाजरी का बीज भी बच जायेगा। उल्लेखनीय है कि संकर बाजरे के मुकाबले देसी बाजरी वजन में हल्की होने से प्रति हैक्टेयर उत्पादन कम होने के कारण किसान खुद के खाने के लिये ही इसका उत्पादन करते हैं, जबकि बाजार में बेचने के लिये संकर बाजरे की पैदावार करते हैं। सही मायने में स्वर्णिम रंग वाली देसी बाजरी ही स्वादिष्ट होती है।

 

हस्तशिल्प

      बरसों पूर्व यहां की महिलाएं खाली समय गुजारने के लिये कशीदाकारी और कपड़े पर बंधेज का काम करती थीं। वह आज शहरी एवं ग्रामीण महिलाओं का रोजगार बन गया है। फैशनेबल कांच कशीदा, कुशन कवर, पेच वर्क युक्त बेडशीट की सम्पन्न लोगों में भारी मांग है। जिले में इस काम में महिला स्वयं सहायता समूह अच्छा कार्य कर रही हैं। जिले के चैहटन, धोरीमना एवं सीमावर्ती छोटे-छोटे गांवों में महिलाएं कपड़े पर कांच लगाकर उत्कृष्ट कला का प्रदर्शन करती हैं। यहां का नेहरू युवा केन्द्र भी कलाकारों एवं शिल्पकारों को आगे लाने में पूरा सहयोग कर रहा है। यहां के कारीगरों की हाथ की छपाई अजरख, मलीर, घाबू, घोणसार आदि आज सम्पूर्ण देश में बाडमेर प्रिंट के नाम से प्रसिद्ध है। जबकि ऊंट एवं भेड़ों की ऊन से निर्मित दरी, जिरोई, कालीन, शॉल, पट्टू का कोई मुकाबला नहीं। पर्यटकों की आवाजाही से हस्तशिप को बढावा मिल रहा है।

 

पुरातत्व

      इतिहास में रूचि रखने वाले पर्यटकों के लिये बाड़मेर जिला मुख्यालय से 40 किलोमीटर दूर 12वीं शताब्दी में निर्मित जूना व किराडू के मंदिर हैं। हालांकि यह मंदिर जीर्ण अवस्था में है, लेकिन खम्भों, दीवारों एवं मेहराबों पर उकेरी मूर्तियां बुलंदी की गाथा स्वयं बयां करती हैं। जबकि बाड़मेर से करीब 90 किलोमीटर दूर देवका में पीले एवं लाल पत्थरों से निर्मित सूर्य मंदिर शानदार नक्काशी और वास्तु कला का अद्भुत नमूना है, जिसके गर्भगृह में उगते सूर्य की पहली किरण पड़ती है। यह खगोलीय ज्ञान का सुंदर उदाहरण है।

      आवागमन के लिये दिल्ली से जोधपुर होते हुये एवं गुजरात की ओर से राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 15 से बाड़मेर पहुंचा जा सकता है। शहर में एक दर्जन अच्छे होटल भी हैं। इनमें दो तीन में तीनसितारा होटलों जैसी सुविधाओं भी हैं। कुल मिलाकर सरकार की ग्रामीण पर्यटन को बढ़ावा देने वाली योजनाओं को सफलता पूर्वक क्रियान्वित कर यहां के ग्रामीणों का जीवन स्तर सुधारा जा सकता है।

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