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12/12/2013  
A से Arvind और क से केजरीवाल -
 

अंग्रेजी की A B C D हो या हिंदी का क ख ग, देश में राजनीती की वर्णमाला अब शुरू इसी नाम से है ..A for Arvind...क से केजरीवाल. मैंने पहले भी लिखा था और फिर दोहरा रहा हूँ ...आम आदमी पार्टी देश में ऐसा प्रयोग है जिसे दुश्वारियों से जूझती जनता बटन दबा कर समर्थन देगी.

लेकिन एक दुश्वारी और भी है ....दो राहे पर खड़ा देश ये नही तय कर पा रहा है की आम आदमी वाले सरकार चला भी पाएंगे या नही. ईमानदार और आम होना अलग बात है ...लेकिन लोकशाही में आगे बढकर सत्ता की कमान संभालना भी अहम है.

मित्रों समस्या सरकार चलाना नही...अगर राबड़ी, मुलायम, मायावती और मधु कोड़ा सरकार चला सकते है तो मनीष सिसोदिया या संजय सिंह क्यूँ नही. असली समस्या ये है कि देश इस वक्त दो विपरीत धाराओं में बंटा है. एक तरफ फक्कड और आम आदमी है तो दूसरी तरफ घाघ और चोर. दोनों राजनीति के दो अलग छोर है ...जो मिल ही नही सकते . दुर्भाग्य से इनके बीच संतुलन करने के लिए कोई दल या सोच नही है. ये देश में राजनैतिक संकट की पहली दस्तक है.
मित्रों हफ्ते भर पहले देश में मोदी की लहर थी और ८ दिसम्बर के बाद केजरीवाल की लहर. एक उठती लहर को दूसरी उठती लहर ने तोड़ दिया या यूँ कहे तो रोक दिया. ये तेजी से बदलता घटनाक्रम भारतीय राजनीति में एक नई क्राईसिस है.
अब हमारे आगे सवाल इतना ही है ...क्या ये नई लहर दो चार महीने हवा को बाँध सकती
है. अगर हाँ तो इन्तेज़ार कीजिये दिल्ली -2 का. जी हाँ दिल्ली-2... यानी २०१४ में लोकसभा भी त्रिशंकु होने जा रही है. क्या आपको भी ऐसा लगता है ?
यह सब लिखा है आज तक के पत्रकार दीपक शर्मा जी नें फेस बुक पर

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