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01/10/2014  
7 अक्टूबर को जंतर मंतर पर करेंगे व्यापारी सम्मेलन
 

दिल्ली किराया कानून गत दो दशकों से लगातार विवाद में रहा है और अब एक बार फिर दिल्ली के व्यापारी इसके खिलाफ लामबंद हो गए हैं क्योंकि इस कानून के चलते आये दिन व्यापारियों को अपनी जमी जमाई दुकानों से बेदखल होना पड़ रहा है जिससे दिल्ली के व्यापारियों में बेहद तनाव का माहौल पनप रहा है !

 दिल्ली के करीब 5 लाख व्यापारी और अपनी रोजी रोटी के लिए उन पर आश्रित लगभग 20 लाख लोग इस कानून सीधे प्रभावित हो रहे हैं ! इस कानून की मार केवल व्यापारियों बल्कि उन लाखों लोगों पर भी पड़ेगी जो किराये की सम्पत्तियों में रह रहे हैं ! व्यापारियों ने इस मामले में केंद्र सरकार के सीधे दखल देने की मांग की है और जल्द ही व्यापारियों का एक प्रतिनिधिमंडल केंद्रीय शहरी विकास मंत्री श्री वेंकैया नायडू से मिलेगा ! इसी बीच आगामी 7 अक्टूबर को जंतर मंतर  पर व्यापारी अपने मुद्दों को लेकर जंतर मंतर पर एक सम्मेलन भी करेंगे !

कॉन्फ़ेडरेशन ऑफ़ आल इंडिया ट्रेडर्स (कैट) के दिल्ली चैप्टर द्वारा आज नई दिल्ली में हुए एक संवाददाता सम्मेलन में कैट के दिल्ली प्रदेश अध्यक्ष श्री रमेश खन्ना ने कहा की जिस समय व्यापारियों ने दुकानें किराये पर ली थी उस समय माकन मालिकों को संपत्ति की कुल कीमत के रूप में राशि दी थी जिसे पगड़ी कहा गया क्योंकि उस समय के कानून के अनुसार माकन मालिक अपनी संपत्ति को बेच नहीं सकते थे और ही बंटवारा कर सकते इसीलिए उस संपत्ति का किराया बहुत ही मामूली रखा गया ! मकान मालिकों ने पगड़ी से प्राप्त राशि से और संपत्तियां खरीदी और इस तरह बड़ी मात्रा में आर्थिक लाभ कमाया !

संवाददाता सम्मेलन में दिल्ली के प्रमुख व्यापारी नेता श्री नरेंद्र मदान, श्री विजय पाल, श्री अतुल भार्गव, श्री देव राज बवेजा, श्री नरेश सांभर, श्री नरेश चावला, श्री सुशील गोयल, श्री सतेंद्र वाधवा, श्री मुरली मणि, श्री जे.पी.जिंदल, श्री सतेन्द्र जैन, श्री राजकुमार बिंदल, श्री सत्य भूषण जैन, श्री संजीव गुप्ता, श्री विनोद मिढ़ा आदि मौजूद थे !


वर्ष 1992 में सरकार द्वारा नेशनल हाउसिंग पालिसी लागू की गयी और मकान मालिकों ने भविष्य में हाउसिंग की बढ़ने वाली मांग को देखते हुए और उनसे लाभ कमाने की खातिर काफी संपत्तियां खरीदी ! वोहरा कमेटी की रिपोर्ट में इस तथ्य का काफी जिक्र भी किया गया है ! दिल्ली किराया कानून 1995 के कुछ प्रावधानों से मकान मालिकों को संपत्तियां खाली करना आसान हो गया और इसीलिए उस समय दिल्ली के व्यापारियों और किरायेदारों ने इसका जबरदस्त विरोध किया. यह बेहद अजीब बात है की वर्ष 2008 तक किसी मकान मालिक की कोई वास्तविक जरूरत नहीं थी लेकिन वर्ष 2008 से अचानक मकान मालिकों की वास्तविक जरूरत पैदा हो गयी और उसके आधार पर किराये की दुकानों को खली कराने के मुकदमें दाखिल किये जाने लगे ! इस से साफ़ पता चलता है की संपत्ति की बढ़ती कीमतों को देख कर ही जमे जमाये दुकानदारों को उनकी दुकाओनों से बेदखल किया जा रहा है !

दिल्ली में लगातार आये दिन मकान मालिक अपनी वास्तविक जरूरत के आधार पर किराये पर चल रही दुकानों को खाली करा रहे हैं ! व्यापारी नेताओं ने कहा की न्याय के प्राकृतिक सिद्धांत के अनुसार वास्तविक जरूरत में दोनों पक्षों को प्रत्येक केस के आधार पर देखा जाना चाहिए ! एक तरफ़ा वास्तविक जरूरत का लाभ केवल मकान मालिकों को मिल रहा है इस से व्यापारियों के अधिकार का हनन हो रहा है ! वास्तविक जरूरत के आधार पर खाली हो रही दुकानों को अक्सर मकान मालिक बिल्डर से मिलकर नए काम्प्लेक्स में परिवर्तित कर या तो बेच रहे हैं या फिर दोबारा किराये पर दे रहे हैं, यह किसी वास्तविक जरूरत है ? व्यापारी नेताओं ने कहा की उच्चतम न्यायलय की एक 5 सदस्यीय पीठ ने ज्ञान देवी के मामले में व्यावसायिक और रिहायशी सम्पत्तियों के अंतर को मान्य किया था लेकिन दुकानदारों को दुकानों से बेदखल करने में मकान मालिक उच्चतम न्यायालय के इस निर्णय की अनदेखी कर रहे हैं !

कैट के राष्ट्रीय महामंत्री श्री प्रवीन खण्डेलवाल ने कहा

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