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03/12/2013  
बचपन में कांग्रेस मेरी पहली पसंद थी- सुप्रीतम बनर्जी
 

हमारे एक पत्रकार साथी जो आजतक में हैं उनका यह लेख फैसबुक पर पढा, इसे आप भी पढें.... जब बिल्कुल बच्चा था, तो कांग्रेस मेरी पहली पसंद थी। वजह कोई ख़ास नहीं... बस इतनी सी कि कांग्रेस का नाम ही ज़्यादा सुना था... बीजेपी या सीपीआई जैसी पार्टियों का नाम तो लड़कपन में ठीक से कानों तक पहुंचा ही नहीं। फिर कांग्रेस ही पहली और आख़िरी पसंद हो सकती थी।

बड़ा होते-होते इतिहास की किताबों में पढ़-पढ़ कर हिंदुस्तान की आज़ादी के लिए भी सिर्फ़ कांग्रेस की ही कदर करने लगा। फिर इंदिरा गांधी की करिश्माई शख्सियत, कच्चे-पक्के बाल, स्मार्टनेस... इन चीजों ने हज़ारों लाखों लोगों की तरह हमें भी जाने-अनजाने कांग्रेस से जोड़ दिया। और तभी एक रोज़ पता चला कि कुछ लोगों ने इंदिरा गांधी की गोली मार कर हत्या कर दी है। रेडियो पर जब ये समाचार सुना, तो सन्न रह गया। उन दिनों पिताजी के पास फिलिप्स का एक ट्रांज़िस्टर हुआ करता था। समाचार सुन कर सोचने लगा कि क्या लोग ऐसा भी कर सकते हैं? नासमझ था। हर बात पर रुलाई छूट जाती थी। सो, इंदिरा गांधी के जाने की ख़बर ने भी रूला दिया। फूट-फूट कर रोने लगा। मां लकड़ी के चूल्हे पर खाना बना रही थी। बड़ी मुश्किल से मुझे चुप कराया।
फिर कईसाल गुज़र गए... हाई स्कूल में पहुंच गया... उन दिनों बीजेपी का अभ्युदय हो रहा था... अटल, आडवाणी, उमा, विहिप, राम मंदिर, राष्ट्रवाद सब मिलकर तेज़ी से मेरे दिमाग़ में जगह घेर रहे थे। धीरे-धीरे दिमाग़ से कांग्रेस कब आउट और बीजेपी कब इन हो गया, पता ही नहीं चला। नए उम्र में अब मेरी बीजेपी पहली पसंद बन चुकी थी। समझ में आने लगा था कि कांग्रेस ने आज़ादी का ढोल पीट-पीट कर बहुत लूट-खसोट मचाई है। देश उतना आगे नहीं निकल सका है, जितना दूसरे मुल्क निकल चुके हैं। नेपाल, भुटान सरीखे देशों के अलावा जब भी किसी देश से अपने देश की तुलना होती, तो अपना नंबर उन्नीस ही होता। इन सब चीजों के लिए मन ही मन कांग्रेस को कोसने लगा। इसी बीच बीजेपी की सरकार भी बन गई। लेकिन ना तो सरकार ज़्यादा दिनों तक चली और ना ही कोई करिश्मा ही हुआ। इसी बीच धीरे-धीरे हमाम में बीजेपी के नेता भी नंगे नज़र आने लगे। बंगारू लक्ष्मण और दिलीप सिंह जूदेव जैसों ने तो साख पर ही बट्टा लगा दिया। उमा भारती जैसी नेताएं भी मौका परस्ती की मिसाल बन गई। अब बीजेपी से भी मोहभंग हो गया और इन दिनों एक सियासी शून्य में था। नाउम्मीदी में सारे नेताओं और सारी सियासत के खिलाफ़ ही बोलता था।
और तभी आम आदमी पार्टी का उदय हुआ। देश में ना सही, दिल्ली में ही सही। अबकी 'आप' से बड़ी उम्मीद है। सिर्फ़ इसलिए कि फिलहाल 'आप' ही एक ऐसी पार्टी लगती है, जो पार्टी विद डिफ़रेंस है। जिनके मुद्दों में भ्रष्टाचार की मुखालिफ़त और आम-आदमी की बात सबसे ऊपर है। वैसे तो भ्रष्टाचार के खिलाफ़ कांग्रेस और बीजेपी भी पूरी तबीयत से बोलती है, लेकिन खाए-पीए-अघाए नेता जब सर्वहाराओं और ग़रीबों की बात कहते हैं, भ्रष्टाचार के खिलाफ खुद को क्रूसेडर प्रूव करने की कोशिश करते हैं, तो असल में उनका नंगापन दिखता है। हो सकता है, कल को 'आप' भी कांग्रेस और बीजेपी की तरह ही निकले। लोगों का वोट लेकर लोगों को ठेंगा दिखा दे... लेकिन अभी अगर कोई फुटपाथ पर खड़े होकर देश और आम आदमी की बात करता है, तो उस पर विश्वास करने का दिल चाहता है। लोकतंत्र में हर कोई अपनी बात रखने को आज़ाद है। आप भी हैं। अगर, आपको भी 'आप' से उम्मीद है, तो कह दीजिए। नहीं है, तो भी कह दीजिए। लेकिन वजह ज़रूर दीजिए। (वैसे ये ज़रूरी नहीं कि विधान सभा और लोक सभा दोनों चुनावों में वोट एक ही पार्टी को दिया जाए।)

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