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08/09/2014  
67 सदस्यों की विधान सभा में 29 सदस्यों वाली भाजपा कैसे साबित करेगी अपना बहुमत-हबीब अख्तर
 

शहर जो है दिल्ली, उच्चतम न्यायालय को यह बताने से पहले कि दिल्ली में चुनी हुई सरकार का गठन कैसे होगा यह सुनिश्चित करने के लिए भारतीय जनता पार्टी हर तरह की कवायद में जुटी लगती है। वहीं दिल्ली की पूर्व सरकार के मुखिया अरविन्द केजरीवाल ने राष्ट्रपति को स्मरण पत्र देकर कहा है

 कि 14 फरवरी को उन्होंने जब दिल्ली सरकार के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दिया था तब और अब की स्थिति में किसी तरह का वास्तविक बदलाव नहीं हुआ है बल्कि दिल्ली विधान सभा में भारतीय जनता पार्टी के सदस्यों की संख्या 32 के बदले घटकर 29 रह गई है। ऐसी स्थिति में भारतीय जनता पार्टी बिना जोड़ तोड़ और अनैतिक तरीकों से सरकार का गठन नहीं कर सकती है। इससे पहले भी वे अपने विधायक दल के साथ राष्ट्रपति से मिलकर भाजपा आम आदमी पार्टी के विधायकों को प्रलोभन देकर अपने साथ मिलाने की कोशिश करते रहे हैं। पिछले दिनों आम आदमी पार्टी के एक अन्य प्रमुख नेता कुमार विश्वास ने भी आरोप लगाया था कि कुछ शतोर्ं के साथ उन्हें दिल्ली के एक भाजपा सांसद ने मुख्यमंत्री बनाए जाने की पेशकश की थी। इस आरोप को उसी पार्टी के नेता प्रशांत भूषण ने सही ठहराते हुए सांसद मनोज तिवारी का नाम लिया था। 

इस तरह के तमाम आरोपों के बीच भाजपा और उसके नेता कहते रहे हैं कि वे सरकार के गठन को लेकर किसी अनैतिक व अवैधानिक कृत्य का सहारा नहीं लेंगे। इसके बावजूद खबरों में माहौल पूरी तरह से गर्म है कि भाजपा दिल्ली में सरकार बनाने जा रही है। इसके लिए दिल्ली के उपराज्यपाल नजीब जंग भाजपा को आमंत्रित करेंगे। खबर यह भी है कि उपराज्यपाल नजीब जंग ने भाजपा के सरकार बनाने का इशारा कर दिया है। इस बात से दिल्ली विधान सभा के में मौजूद सभी दलों और निर्दलीय सदस्यों की बेचैनी बढ़ गई है। बेचैनी भारतीय जनता पार्टी में भी है कि वह कैसे अपनी सरकार का गठन करेगी। भाजपा हलकों में यहां तक तय माना जा रहा है कि उनके अगले मुख्यमंत्री डॉ. जगदीश मुखी होंगे।
स्थिति यह है कि संविधान एवं संसदीय परम्पराओं के विशेषज्यों को भी समझ नहीं आ रहा कि दिल्ली में भाजपा अपनी सरकार का गठन कैसे कर सकेगी। क्योंकि निलम्बित दिल्ली विधान सभा के सदन में इस समय कुल 67 सदस्य हैं। अगर उपराज्यपाल विधान सभा की बैठक बुलाते हैं तब उसमें सरकार बनाने वाले दल को बहुमत साबित करना होगा। गुप्त मतदान के लिए अगर सदन सहमत होगा तभी सदन के नेता के चयन की प्रक्रिया आगे बढ़ सकती है। स्थिति यह भी है कि मौजूदा विधान सभा के अध्यक्ष एम एस धीर हैं। जिन्होंने आम आदमी पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ा था। उनकी मौजूदगी में ही विधान सभा की पिछली कार्यवाही चली थी। उपराज्यपाल अगर भाजपा के सर्व सम्मत नेता को अगर मुख्यमंत्री पद की शपथ दिला देते हैं तो उस नेता को सदन में अपना बहुमत साबित करना होगा। सब जानते हैं कि इस समय भाजपा के पास कुल 29 सदस्य हैं। पहले सदन में उसकी संख्या 32 थी। तीन विधायक लोक सभा का चुनाव लड़े, जीते सांसद बने और उन्होंने दिल्ली विधान सभा की सदस्यता से अपना अपना इस्तीफा दे दिया। 67 सदस्यों के सदन में भाजपा को हर हाल में 34 सदस्यों का सामान्य बहुमत दिखाना होगा। अगर मान लिया जाए निर्दलीय रामबीर शौकीन और आम आदमी पार्टी से बाहर निकाले गए विनोद कुमार बिन्नी सरकार के गठन में भाजपा के साथ खड़े होते हैं तो उनकी कुल संख्या 31 पर पहँुचेगी। इसके बावजूद उन्हें सदन में तीन अन्य सदस्यों का समर्थन मिलना ज़रूरी होगा। एक बात और विचारणीय है कि विधान सभा के सत्र का संचालन कोई भी सत्ता धारी दल बिना अपने अध्यक्ष के बिना कैसे करेगा। क्योंकि निरपेक्ष होने के बावजूद विधान सभा अध्यक्ष की विधान सभा सत्र के संचालन में अहम भूमिका होती है। अगर विधान सभा के अध्यक्ष वही रहेंगे तो भाजपा को सदन में विश्वासमत्र प्राप्त करना मुश्किल होगा। सदन में बहुमत सिद्ध करने के लिए उसे अपने दल शक्ति से बनाए अध्यक्ष पर ही भरोसा होगा। इसलिए वह नया विधान सभा अध्यक्ष का भी चुनाव करवाएगी। ऐसा करने पर विधान सभा में भाजपा सदस्यों की संख्या 3क् रह जाएगी और उसे चार अन्य सदस्यों की दरकार होगी। अगर भाजपा के साथ अन्य सदस्य नहीं जुड़े तो सदन में विश्वास मत प्राप्त करने के दौरान ही उसकी सरकार गिर सकती है। और सरकार गिरने के बाद अफरातफरी को जो माहौल बनेगा उसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती है। 
लोगों का कयास है कि भाजपा एक अलग रणनीति पर काम कर रही है। वह चहा रही है कि सदन से करीब आधा दर्जन सदस्य अनुपस्थित हो जाएं,फर मौजूद सदस्यों में उसे अपना बहुमत सिद्ध करने का अवसर मिल जाएगा। दूसरी ओर लोगों का मानना है कि कोई भी गैर भाजपा पार्टी सदस्य ऐसा कर अपने राजनैतिक कैरियर को दांव पर नहीं लगाएगा। अगर कांग्रेस विधायक दल के कुल आठ सदस्यों में से टूट कर चार या छह का अलग समूह बनाकर नई सरकार का समर्थन कर दें तो सरकार निश्चित रूप से विश्वास मत सदन में प्राप्त कर सकती है। इस कवायद में भी बहुत से पेंच हैं। समर्थन कोई अगर देगा तो उसके आशय को ढूंढा जाएगा। सब मानते हैं कि राजनीति में कोई दल या नेता बिना प्रलोभन के दूसरों को समर्थन नहीं देता। अगर सरकार बनाने के लिए उपराज्यपाल नजीब जंग भाजपा को आमंत्रित करते हैं तो उनकी विश्वसनियता पर भी सवाल उठेंगे। वे शपथ दिलाते हैं तब भी वह विवाद में शामिल कर लिए जाएंगे। भाजपा भी अपनी विश्वसनियता खोयेगी। क्योंकि उसने कहा था कि वह सरकार बनाने की स्थिति में नहीं है क्योंकि उसके पास बहुमत नहीं है। केन्द्र में भाजपा का शासन है इसलिए दबाव में सरकार बन तो सकती है लेकिन वह भ्ष्टाचार के आरोप से बरी नहीं हो पाएगी। समर्थन में आने वाले भी उसी हम्माम में शामिल माने जाएंगे। कुल मिलाकर आया राम गया राम के बिना सरकार कैसे बनेगी यह इस समय का यक्ष प्रश्न है। बेहतर होगा कि केन्द्र सरकार और राष्ट्रपति दिल्ली विधान सभा को भंग करने का निर्देश दें और दिल्ली में नए सिरे से विधान सभा चुनाव हों। इसके बाद जो बहुमत में आए वह सरकार बनाए। भाजपा सहित सभी दलों को एक साथ यह निर्णय लेना चाहिए ताकि लोकतंत्र और लोकतांत्रिक परम्परा का निर्वाह उसके मूल तत्व के साथ होता रह सके।

साभार फेसबुक

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