29/11/2014 | ||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
एनईआरपीएसआईपी- उत्तर पूर्वी के लिए जीवन का नया आधार | ||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
उत्तर पूर्वी क्षेत्र बिजली प्रणाली सुधार परियोजना (एनईआरपीएसआईपी) को मंजूरी देने का सरकार का फैसला उत्तर पूर्वी राज्यों के आर्थिक विकास के लिए उसकी प्रतिबद्धता के अनुरूप है। उत्तर पूर्वी राज्यों में वितरण एवं पारेषण प्रणालियां काफी कमजोर रही हैं और इसके मद्दे नजर केन्द्रीय बिजली प्राधिकरण ने पावर ग्रिड कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड पीजीसीआईएल के साथ विचार विमर्श कर उत्तर पूर्वी राज्यों के लिए एक व्यापक योजना बनाई है। नई केन्द्रीय
क्षेत्र योजना बिजली
मंत्रालय की
नई केन्द्रीय
क्षेत्र
योजना के तहत
इस स्कीम को
लिया जाना है
और इसे विश्व
बैक से प्राप्त
होने वाले ऋण
की सहायता और
भारत सरकार
द्वारा
क्रियान्वित
किया जाएगा।
एनईआरपीएसआईपी
में आने वाले
खर्च की 50:50
प्रतिशत राशि
विश्व बैक और
भारत सरकार
द्वारा वहन की
जाएगी लेकिन
क्षमता निर्माण
पर आने वाले
खर्च 89 करोड़
रुपये को पूरी
तरह भारत
सरकार वहन
करेगी। यह
परियोजना 3
चरणों वाले
विकासात्मक
कार्यक्रम का
पहला चरण है
जिसके लिए
विश्व बैक 500
मिलियन
अमेरिकी डॉलर
प्रत्येक की
तीन किश्तें
देगा। पीजीसीआईएल-क्रियान्वयन
एजेंसी यह
परियोजना
पीजीसीआईएल
के जरिए छह उत्तर
पूर्वी राज्यों
के सहयोग से
क्रियान्वित
की जाएगी और
इसे 4 वर्षों
की अवधि में
शुरू किया
जाएगा।
परियोजना
शुरू होने के
बाद इसके स्वामित्व
एवं रख रखाव
की जिम्मेदारी
राज्य
सरकारों की होगी।
परियोजना
की अनुमानित
लागतें फरवरी 2014 की
कीमतों के
आधार पर इस
परियोजना की अनुमानित
लागत 5111.33 करोड़
रुपये बताई
गयी थी। इसका
विवरण इस
प्रकार है- (आंकडे
करोड़ रुपये
में) विश्व
बैक भारत
सरकार कुल परियोजना
लागत परियोजना
लागत क्षमता
निर्माण असम 729.485 729.485 14.83 1473.803 मणिपुर 213.690 213.690 14.83 442.213 मेघालय 381.050 381.050 14.83 776.933 मिजोरम 150.965 150.965 14.83 316.763 नागालैंड 357.290 357.290 14.83 729.413 त्रिपुरा 678.685 678.685 14.83 1372.203 उप-
योग 2511.165 2511.165 89 5111.33 कुल
योग 2511.165 2600.165 मौजूदा
पारेषण
नेटवर्क वर्तमान
में, उत्तर
पूर्व के सभी
छह राज्य 132
किलोवाट और कम
क्षमता के
पारेषण
नेटवर्क से
जुडे है इन
राज्यों में
33 किलोवाट प्रणाली
बिजली वितरण
प्रणाली की
रीढ़ है। राज्यों
में वितरण एवं
पारेषण के बीच
मांग एवं
उपलब्धता के
अंतर को कम
करने के लिए उत्तर
पूर्वी के सभी
छह राज्यों
में 132 किलोवाट/220
किलोवाट
कनेक्टीविटी
आवश्यक है
ताकि वोलटेज
प्रबंधन
समुचित हो और
वितरण में कम
से कम हानियां
हो। इसी
प्रकार उत्तर
पूर्वी के सभी
छह राज्यों
में वितरण
प्रणाली मुख्यत:
33 किलोवाट
नेटवर्क पर
आधारित है
जिसमें व्यापक
रूप से सुधार
किया जाएगा। योजना/परियोजना
का प्रभाव
इस
परियोजना के
क्रियान्वयन
से एक विश्वसनिय
राज्य पावर
ग्रिड की स्थापना
होगी और अन्य
लोड सेंटरों
से इसके कनेक्शन
में सुधार
होगा और इससे
सभी श्रेणी के
उपभोक्ताओं
को ग्रिड से
जुडी बिजली के
लाभ मिल सकेंगे।
यह
परियोजना
राज्यों के
ऐसे गांव और
शहरों को
जरूरी ग्रिड
क्नेक्टिवीटी
उपलब्ध
करायेगी जहां
केंद्र सरकार
के विभिन्न
कार्यक्रमों
के तहत निचले
स्तरों पर
वितरण
प्रणाली का
विकास किया जा
रहा है।
यह
परियोजना सभी के लिए
बिजल राष्ट्रीय के
राष्ट्रीय
उद्देश्य को
पूरा करने का
प्रयास है।
इसमें ग्रिड
से जुड़ी
बिजली तक
उपभोक्ताओं
की पहुंच में
वृद्धि के
जरिये बिजली
आपूर्ति की
उपलब्धता पर
ध्यान दिया गया
है जिससे
समावेशी
वृद्धि को
बढ़ावा
मिलेगा।
इस
परियोजना से
इन राज्यों
में प्रति
व्यक्ति बिजली
खपत में
बढोतरी होगी। और
इससे पूर्वोत्तर
क्षेत्र के
विकास में
योगदान
मिलेगा।
फिलहाल ये
राज्य बिजली
की औसत
राष्ट्रीय
खपत से काफी
पीछे है। राज्य
की बिजली
कंपनियों के
अधिकारियों
को केंद्रीय
क्रियान्वयन
एजेंसी के साथ
सहयोग का
फायदा मिलेगा
और वे विकास
के दूसरे और
तीसरे चरण में
व्यापक
भूमिका
निभाने में
सक्षम होंगे। लेखक राजेश
मल्होत्रा,
निदेशक और एन. देवन, सहायक
निदेशक,
पीआईबी, नई
दिल्ली | ||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
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