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01/12/2014  
पान में हैं कई गुण, पान की खेती कर्नाटक में सबसे ज्यादा
 

पान एक बहुवर्षीय बेल है, जिसका उपयोग हमारे देश में पूजा-पाठ के साथ-साथ खाने में भी होता है। खाने के लिये पान पत्ते के साथ-साथ चूना कत्था तथा सुपारी का प्रयोग किया जाता है। ऐसा लोक मत है कि पान खाने से मुख शुद्ध होता है, वहीं पान से निकली लार पाचन क्रिया को तेज करती है, जिससे भोजन आसानी से पचता है। साथ ही शरीर में स्फूर्ति बनी रहती है। भारत में पान की खेती लगभग 50,000 है0 में की जाती है। इसके अतिरिक्त पान की खेती बांग्लादेश, श्रीलंका, मलेशिया, सिंगापुर,थाईलैण्ड, फिलीपिंस, पापुआ, न्यूगिनी आदि में भी सफलतापूर्वक की जाती है।

 भारत में पान की खेती:- भारत वर्ष में पान की खेती प्राचीन काल से ही की जाती है। अलग-अलग क्षेत्रों में इसे अलग- अलग नामों से पुकारा जाता है। इसे संस्कृत में नागबल्ली, ताम्बूल हिन्दी भाषी क्षेत्रों में पान मराठी में पान/नागुरबेली, गुजराती में पान/नागुरबेली तमिल में बेटटीलई,तेलगू में तमलपाकु, किल्ली, कन्नड़ में विलयादेली और मलयालम में बेटीलई नाम से पुकारा जाता है। देश में पान की खेती करने वाले राज्यों में प्रमुख राज्य निम्न है।

राज्य

अनुमानित क्षेत्रफल है0 में

कर्नाटक     

8,957

तमिलनाडु   

5,625

उड़ीसा

5,240

केरल 

3,805

बिहार 

4,200

पश्चिम बंगाल

3,625

असम (पूर्वोत्तर राज्य)

3,480

आन्ध्रप्रदेश   

3,250

महाराष्ट्र     

2,950

उत्तर प्रदेश   

2,750

मध्य प्रदेश  

1,400

गुजरात           

250

राजस्थान

150

पान के औषधीय गुण:- पान अपने औषधीय गुणों के कारण पौराणिक काल से ही प्रयुक्त होता रहा है। आयुर्वेद के ग्रन्थ सुश्रुत संहिता के अनुसार पान गले की खरास एवं खिचखिच को मिटाता है। यह मुंह के दुर्गन्ध को दूर कर पाचन शक्ति को बढ़ाता है, जबकि कुचली ताजी पत्तियों का लेप कटे-फटे व घाव के सड़न को रोकता है। अजीर्ण एवं अरूचि के लिये प्रायः खाने के पूर्व पान के पत्ते का प्रयोग काली मिर्च के साथ तथा सूखे कफ को निकालने के लिये पान के पत्ते का उपयोग नमक व अजवायन के साथ सोने के पूर्व मुख में रखने व प्रयोग करने पर लाभ मिलता है।

 वानस्पतिक विवरण/विन्यास:- पान एक लताबर्गीय पौधा है, जिसकी जड़ें छोटी कम और अल्प शाखित होती है। जबकि तना लम्बे पोर, चोडी पत्तियों वाले पतले और शाखा बिहीन होते हैं। इसकी पत्तियों में क्लोरोप्लास्ट की मात्रा अधिक होती है। पान के हरे तने के चारों तरफ 5-8 सेमी0 लम्बी,6-12 सेमी0 छोटी लसदार जडें निकलती है, जो बेल को चढाने में सहायक होती है।

            आकार में पान के पत्ते लम्बे, चौड़े व अण्डाकार होते हैं, जबकि स्वाद में पान चबाने पर तीखा, सुगंधित व मीठापन लिये होता है।

 पान का रसायन:- पान में मुख्य रूप से निम्न कार्बनिक तत्व पाये जाते हैं, इसमें प्रमुख निम्न हैः-

फास्फोरस                0.13                 0.61%

पौटेशि‍यम                1.8                   36%

कैल्शियम                0.58                 1.3%

मैग्नीशियम               0.55                 0.75%

कॉपर              20-27 पी0पी0एम0          -

जिंक              30-35 पी0पी0एम0         -

शर्करा                       0.31-40 /ग्रा0          -

कीनौलिक यौगिक      6.2-25.3 /ग्रा0       -

पान में पाये जाने वाले बिटामिनों में ए,बी,सी प्रमुख है।

नोट:- पान में गंध व स्वाद वाले उड़नशील तत्व पाये जाते हैं, जो तैलीय गुण के होते हैं। ये तत्व ग्लोब्यूल के रूप में पान के मीजोफिल उत्तकों में पाये जाते हैं। जिनका विशेष कार्य पान के पत्तियों में वाष्पोत्सर्जन को रोकना तथा फफूंद संक्रमण से पत्तियों को बचाना है। अलग-अलग  में ये गंध व स्वाद वाले तत्व निम्न अनुपात में पाये जाते हैं। जैसे- मीठा पान में 85 प्रतिशत सौंफ जैसी गंध, कपूरी पान में 0.10 प्रतिशत कपूर जैसी गंध, बंगला पान में 0.15-.20 प्रतिशत लवंग जैसी, देशी पान में 0.12 प्रतिशत लबंग जैसी । उल्लेखनीय है कि सभी प्रकार के पान में यूजीनॉल यौगिक पाया जाता है, जिससे पान के पत्तों में अनुपात के अनुसार तीखापन होता है। इसी प्रकार मीठा पान में एथेनॉल अच्छे अनुपात में होता है, जिससे इस प्रकार के पान मीठे पान के रूप में अधिक प्रयुक्त होते हैं।

पान की खेती

            भारतवर्ष में पान की खेती अलग.-2 क्षेत्रों में अलग-अलग प्रकार से की जाती है जैसे-दक्षिण भारत मेे जहां वर्षा अधिक होती है तथा आर्द्रता अधिक होती है, में पान प्राकृतिक परिस्थितियों में किया जाता है। इसी प्रकार आसाम तथा पूर्वोत्तर भारत में जहां वर्षा अधिक होती है व तापमान सामान्य रहता है, में भी पान की खेती प्राकृतिक रूप में की जाती है। जबकि उत्तर भारत में जहां कडाके की गर्मी तथा सर्दी पडती है, में पान की खेती संरक्षित खेती के रूप में की जाती है।इन क्षेत्रों में पान का प्राकृतिक साधनों (बांस,घास आदि) का प्रयोग कर बरेजों का निर्माण किया जाता है तथा उनमें पान की आवश्यकतानुसार नमी की व्यवस्था कर बरेजों में कृत्रिम आर्द्रता की जाती है, जिससे कि पान के बेलों का उचित विकास हो सके।

 

जलवायु:- अच्छे पान की खेती के लिये जलवायु की परिस्थितियां एक महत्वपूर्ण कारक हैं। इसमें पान की खेती के लिये उचित तापमान,आर्द्रता,प्रकाश व छाया,वायु की स्थिति,मृदा आदि महत्तवपूर्ण कारक हैं। ऐसे भारतवर्ष में पान की खेती देश के पश्चिमी तट,मुम्बई का बसीन क्षेत्र, आसाम,मेघालय, त्रिपुरा के पहाडी क्षत्रों, केरल के तटवर्तीय क्षेत्रों के साथ-साथ उत्तर भारत के गर्म व शुष्क क्षेत्रों, कम वर्षा वाले कडप्पा, चित्तुर, अनन्तपुर (आ0प्र0) पूना, सतारा, अहमदनगर (महाराष्ट्र),बांदा, ललितपुर, महोबा (उ0प्र0) छतरपुर (म0प्र0) आदि क्षेत्रों में भी सफलतापूर्वक की जाती है। पान की उत्तम खेती के लिये जलवायु के विभिन्न घटकों की आवश्यकता होती है।जिनका विवरण निम्न है-

1-         तापमान:- पान का बेल तापमान के प्रति अति संवेदनशील रहता है। पान के बेल का उत्तम विकास उन क्षेत्रों में होता है, जहां तापमान में परिवर्तन मध्यम और न्यूनतम होता है। पान की खेती के लिये उत्तम तापमान 28-35 डिग्री सेल्सियस तक रहता है।

2-         प्रकाश एवं छाया:- पान की खेती के लिये अच्छे प्रकाश व उत्तम छाया की आवश्यकता पडती है।       सामान्यतः 40-50 प्रतिशत छाया तथा लम्बे प्रकाश की अवधि की आवश्यकता पान की खेती को होती   है। इसका मुख्य कारण पान की पत्तियों में प्रकाश संश्लेषण की क्रिया कर नियमित होना होता है।       अच्छे प्रकाश में पान के पत्तों के क्लोरोफिल का निर्माण अच्छा होता है। फलतः पान के पत्ते अच्छे होते हैं व उत्पादन अच्छा होता है।

3-         आर्द्रता:- अच्छे पान की खेती के लिये अच्छे आर्द्रता की आवश्यकता होती है। उल्लेखनीय है कि पान       बेल की बृद्वि सर्वाधिक वर्षाकाल में होती है, जिसका मुख्य कारण उत्तम आर्द्रता का होना है। अच्छे       आर्द्रता की स्थिति में पत्तियों में पोषक तत्वों का संचार अच्छा होता है। तना, पत्तियों में बृद्वि अच्छी       होती है, जिससे उत्पादन अच्छा होता है।

4-         वायु:- उल्लेखनीय है कि वायु की गति वाष्पन के दर को प्रभावित करने वाली मुख्य घटक है। पान के खेती के लिये जहां शुष्क हवायें नुकसान पहुंचाती है, वहीं वर्षाकाल में नम और आर्द्र हवायें पान की    खेती के लिये अत्यन्त लाभदायक होती है।

5-         मृदा:- पान की अच्छी खेती के लिये महीन हयूमस युक्त उपजाऊ मृदा अत्यन्त लाभदायक होती है। वैसे पान की खेती देश के विभिन्न क्षेत्रों में बलुई, दोमट, लाल व एल्युबियल मृदा व लेटैराईट मृदा में भी सफलतापूर्वक की जाती है। पान की खेती के लिये उचित जल निकास वाले प्रक्षेत्रों की आवश्यकता होती है। प्रदेश में पान की खेती प्रायः ढालू व टीलेनुमा प्रक्षेत्रों पर जहां जल निकास की उत्तम व्यवस्था हो, में की जाती है। पान की खेती के लिये 7-7.5 पी0एच0 मान वाली मृदा सर्वोत्तम      है।

देश में पान की खेती अलग-2 क्षेत्रों में कई विधियों से की जाती है। जेसे- तटवर्तीय क्षेत्रों में नारियल व सुपारी के बागानों में, जबकि दक्षित भारत में पान की खेती खुली संरक्षण शालाओं में की जाती है। जबकि उत्

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