28/12/2014 |
अटल बिहारी वाजपेयी : शांति के देवदूत-मानवता के साक्षात स्वरूप |
धोती-कुर्ता पहने 28 बरस का एक नौजवान 8 मई, 1953 को दिल्ली रेलवे स्टेशन पर एक पैसेंजर ट्रेन की अनारक्षित बोगी में अपना सामान धकेलने की जद्दोजहद कर रहा था। यह नजारा भारतीय जनसंघ (वर्तमान भारतीय जनता पार्टी के पूर्ववर्ती दल) के संस्थापक डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी की रवानगी का था। डॉ. मुखर्जी सरकार के प्रवेश-परमिट आदेश का उल्लंघन करने और जम्मू-कश्मीर का भारतीय संघ में पूर्ण विलय किए जाने की मांग को लेकर राज्य में दाखिल होने के मिशन पर रवाना हो रहे थे। उनके साथ मौजूद
इस अनजान से युवक
का नाम अटल
बिहारी
वाजपेयी था, जो
अब तक पत्रकार
रहने के बाद डॉ.
मुखर्जी के
राजनीतिक
सचिव बने थे। डॉ.
मुखर्जी को 10
मई, 1953 को
जम्मू-कश्मीर
सीमा पर उस
समय गिरफ्तार
कर लिया गया,
जब वे प्रवेश
परमिट लिए
बिना राज्य
में दाखिल हो
रहे थे।
उन्हें
श्रीनगर जेल
ले जाया गया। उन्होंने
अपने साथी
वाजपेयी को
पार्टी के सदस्यों
के लिए संदेश
और आंदोलन
जारी रखने के
पैगाम के साथ
दिल्ली वापस
भेज दिया।
उनका कहना था 'एक
देश में दो
विधान, दो
प्रधान और दो
निशान नही
चलेंगे'। डॉ.
मुखर्जी की
श्रीनगर में
हिरासत के
दौरान रहस्यमय
परिस्थितियों
में 23 जून, 1953 को
मौत हो गई और
युवा वाजपेयी
अपनी वाकपटु
भाषण शैली के
साथ अपने
राजनीतिक मार्गदर्शक
का संदेश
देशभर में
फैलाने में
जुट गए और उन्होंने
स्वाधीन
भारत के
राजनीतिक
परिदृश्य पर
अमिट छाप छोड़ी।
अटल जी
दूसरे आम
चुनाव के
दौरान 1957 में
उत्तर
प्रदेश के
बलरामपुर से
लोकसभा सदस्य
बने और उनके
प्रथम भाषण ने
उन्हें तत्कालीन
प्रधानमंत्री
जवाहर लाल
नेहरू सहित अनेक
समकालीन
अनुभवी
सांसदों से
सराहना दिलवाई।
पंडित नेहरू
ने एक बार
किसी विदेशी
मेहमान से श्री
वाजपेयी का
परिचय करवाते
हुए कहा था कि ''ये
नौजवान एक दिन
देश का
प्रधानमंत्री
बनेगा।'' नेशनल
कॉन्फ्रेंस
के नेता शेख
अब्दुल्ला
को जब 8 अप्रैल 1964
को दिल्ली
में नजरबंदी
से रिहा किया
गया और उन्हें
पाकिस्तान
के कब्जे
वाले कश्मीर
जाने की
अनुमति दी गई,
तो अटल जी,
राज्य सभा
में पंडित
नेहरू की
आलोचना करने
से भी नहीं
चूके। लेकिन
उन्हीं
वाजपेयी जी ने
पंडित नेहरू
का 27 मई 1964 को निधन
होने पर, दिवंगत
प्रधानमंत्री
को ऊपरी सदन
में भावभीनी
श्रद्धांजलि
भी दी। अपने
राजनीतिक
विरोधियों का
सम्मान
हमेशा से श्री
वाजपेयी के
बहुमुखी व्यक्तित्व
की विलक्षण
विशेषता रही
है। श्री
वाजपेयी 47
वर्षों तक
सांसद रहे, वे 11
बार लोकसभा के
लिए
निर्वाचित
हुए और 2 बार राज्यसभा
सदस्य रहे,
लेकिन जम्मू-कश्मीर
का मामला
हमेशा से उनके
जहन में रहा।
वे नेहरू की
जम्मूकश्मीर
नीति के घोर
आलोचक थे। वे
लगातार छह बार
उत्तर
प्रदेश की
लखनऊ सीट से
लोकसभा के लिए
निर्वाचित
हुए। हृदय से
कवि, अटल जी ने
कविता को किसी
भी परिस्थिति
में स्वयं को
अभिव्यक्त
करने का माध्यम
बना लिया। वे
अक्सर भाषण
के दौरान अपना
संदेश देने के
लिए अपनी
कविता का पाठ
करके
श्रोताओं को
मंत्रमुग्ध
कर देते। अटल जी को
यह प्रतिभा
अपने पिता
कृष्ण
बिहारी
वाजपेयी से
विरासत में
मिली थी और वे
बचपन से ही
कविताओं की
रचना करते रहे
और अपने पिता
के साथ पूर्व
रियासत ग्वालियर
में कवि सम्मेलनों
में जाकर उनका
पाठ करते रहे,
जहां उनका एक
मध्यमवर्गीय
परिवार में,
एक विद्यालय
के अध्यापक
के घर में जन्म
हुआ था। उनका
काव्य
संग्रह ''मेरी
इक्यावन
कविताएं''
बहुत
लोकप्रिय है।
प्रसिद्ध
फिल्म
निर्माता यश
चोपड़ा ने
''अंतर्नाद''
नामक एक एलबम
का निर्देशन
किया है। यह
एलबम अटल जी
की कुछ
बेहतरीन
कविताओं पर
आधारित है,
जिन्हें
शाहरुख खान के
साथ गजल गायक
जगजीत सिंह ने
स्वर दिए
हैं। जम्मू-कश्मीर
पर उनकी एक
कविता ''मस्तक
नहीं झुकेगा''
जम्मू-कश्मीर
के मामले पर
भारत की
स्थिति
दर्शाती है। 1977 में जनता
पार्टी की
सरकार में
विदेश मंत्री
रहते हुए श्री
वाजपेयी ने
पाकिस्तान
सहित भारत के
पड़ोसी देशों
के साथ शांतिपूर्ण
सह-अस्तित्व
और परस्पर
सम्मान के
सिद्धांत पर
आधारित मैत्रीपूर्ण
संबंधों की
नीति का
अनुसरण किया। उनका
प्रसिद्ध कथन
''आप दोस्त
बदल सकते हैं,
पड़ोसी नहीं''
भारत के विदेश
मंत्रालय का
सूक्ति वाक्य
बन चुका है। जब श्री
वाजपेयी 1996 में 13
दिन के लिए
पहली बार और उसके
बाद 1998 में 13
महीनों के लिए
और 1999 में पूरे
पांच साल के
कार्यकाल के
लिए
प्रधानमंत्री
बने, तो
पाकिस्तान
के साथ जम्मूकश्मीर
सहित सभी
लंबित मामलों
का
शांतिपूर्ण
ढंग से, बिना
किसी तीसरे
पक्ष के हस्तक्षेप
के
द्विपक्षीय
बातचीत से
समाधान उनका
मंत्र था। 13 मई 1998 को
पोखरण में सफल
परमाणु
परीक्षण
''ऑपरेशन
शक्ति'' अटल जी
का रणनीतिक
मास्टर स्ट्रोक
था, जिसका उन्होंने
व्यापक
संहार की
क्षमता वाले
हथियार की जगह
''निवारक'' करार
देते हुए बचाव
किया। उन्होंने
भारत को विश्व
के अभिजात्य
परमाणु क्लब
में स्थान
दिला दिया,
हालांकि
भविष्य में
परमाणु
परीक्षणों पर
रोक की घोषणा
की। 19 फरवरी 1999
को लाहौर बस
यात्रा के
दौरान वे
शांति का
संदेश लेकर
पाकिस्तान
गए। श्री
वाजपेयी ने
''मीनार-ए-पाकिस्तान''
का दौरा किया,
जहां उन्होंने
पाकिस्तान
के अस्तित्व
के लिए भारत
की
प्रतिबद्धता
की एक बार फिर
से पुष्टि की। लाहौर
में गवर्नर्स
हाउस में
भावपूर्ण
भाषण देकर उन्होंने
पाकिस्तान
की जनता को
अपना कायल बना
दिया। इस भाषण
का पाकिस्तान
और भारत में
सीधा प्रसारण
किया गया। अटल जी ने परस्पर
विश्वास के
आधार पर दोस्ती
का हाथ बढ़ाया
तथा आतंकवाद
और मादक
पदार्थों की
तस्करी रहित
भारतीय
उपमहाद्वीप में
गरीबी के
खिलाफ
सामूहिक
संघर्ष का
आह्वान किया। श्री
वाजपेयी जी के
भावनाओं से
परिपूर्ण
भाषण ने
प्रधानमंत्री
नवाज शरीफ को
यह कहने पर
विवश कर दिया -
''वाजपेयी
साहब अब तो आप
पाकिस्तान
में भी इलेक्शन
जीत सकते
हैं।'' वाजपेयी
जी ने पाकिस्तान
के
प्रधानमंत्री
नवाज शरीफ के
साथ 21 फरवरी 1999
को लाहौर
घोषणा-पत्र पर
भी हस्ताक्षर
किए, जिसमें
पाकिस्तान
ने दोनों
देशों के बीच
जम्मू-कश्मीर
सहित सभी
द्विपक्षीय
मामलों के शांतिपूर्ण
और बातचीत के
जरिए समाधान तथा
जनता के बीच
आपसी संपर्क
को बढ़ावा
देने पर सहमति
व्यक्त की। पाकिस्तान
के साथ पारस्परिक
आदान-प्रदान
के आधार पर
शांतिपूर्ण
और मैत्रीपूर्ण
संबंधों को
बढ़ावा देने
के वाजपेयी
सरकार के
प्रयासों के
प्रतीक के रूप
में दिल्लीलाहौर
बस सेवा ''सदा-ए-सरहद''
शुरू की गई। अटल जी ने इस
बस सेवा को तब
भी नहीं
रुकवाया, जब
पाकिस्तान
के सेना
प्रमुख परवेज
मुशर्रफ ने मई
और जुलाई 1999 के
बीच करगिल पर
हमला किया। इस
हमले को
भारतीय सशस्त्र
बलों ने
सफलतापूर्वक
नाकाम कर दिया
और पाकिस्तानी
सेना को
क्षेत्र की पहाडि़यों
से कब्जा
हटाने के लिए
बाध्य कर
दिया। हालांकि
भारतीय संसद
पर 13 दिसंबर 2001
को पाकिस्तान-आईएसआई
द्वारा
प्रायोजित
आतंकवादी हमले
के बाद दोनों
पड़ोसियों के
बीच तनाव बढ़ने
पर यह बस सेवा
रोक दी गई। हालांकि
जब पाकिस्तान
ने भारत सरकार
और अंतर्राष्ट्रीय
समुदाय को यह
भरोसा दिलाया
कि वह अपनी
जमीन का इस्तेमाल
आतंकवादी
गतिविधियों
के लिए नहीं होने
देगा, तब 16
जुलाई 2003 को यह
सेवा बहाल कर
दी गई। पिछले 13
से ज्यादा
वर्षों में
भारत-पाक
संबंधों में
कई उतार-चढ़ाव
आए, लेकिन
दिल्लीलाहौर
बस दोनों
देशों के बीच
संपर्क
बरकरार रखते
हुए उनकी जनता
की इच्छाओं
का प्रतीक बनी
रही। अटल जी का
इंसानियत, जम्हूरियत
और कश्मीरियत
की भावना के
साथ जम्मू-कश्मीर
में शांति,
प्रगति और
समृद्धि का
सिद्धांत घाटी
के उग्रवादी
तत्वों और
शायद
नियंत्रण
रेखा के पार
पाकिस्तान
के कब्जे
वाले कश्मीर
में बसे कश्मीरियों
सहित जम्मू-कश्मीर
के राजनीतिक धरातल
के सभी वर्गों
द्वारा सराहा
गया। करगिल
संघर्ष,
भारतीय विमान
का अपहरण कर
कंधार ले जाने
और भारतीय
संसद पर
आतंकवादी
हमले सहित
बातचीत की पहल
के रास्ते
में आए सभी व्यवधानों
और पाकिस्तानी
सेना और
आईएसआई
द्वारा उकसाने
की गंभीर
कोशिशों के
बावजूद
वाजपेयी ने
शांति प्रक्रिया
को पटरी से
नहीं उतरने
दिया। उनकी
एनडीए सरकार
ने
उपमहाद्वीप
की शांति और भाईचारे
के व्यापक
हित में, विश्वास
बहाली के
उपायों और
जनता के बीच
आपसी संपर्क
को प्रोत्साहन
देना जारी
रखा, जो उस क्षेत्र
की प्रगति और
विकास का
अनिवार्य घटक
है, जहां की एक-तिहाई
आबादी गरीबी
रेखा से नीचे
जीवन यापन करने
को विवश है। अब भारत
के सबसे
लोकप्रिय और
ऊर्जावान
नेता,
प्रधानमंत्री
नरेन्द्र
मोदी के
नेतृत्व में एनडीए-2
आतंकवाद मुक्त
समृद्ध
दक्षिण एशिया
के वाजपेयी के
अधूरे एजेंडे को
पूरा करने के
मिशन पर जुट
गई है। प्रधानमंत्री
श्री मोदी ने सभी
पड़ोसी देशों
के साथ रिश्ते
सुधारने की
भारत की अग्र
सक्रिय नीति
के मामले में
उसी सिरे से
शुरूआत की है,
जहां पर श्री
वाजपेयी ने
उसे छोड़ा था।
सभी पड़ोसी
देशों से रिश्ते
सुधारने के
प्रयासों की
झलक एनडीए-2 की
शुरूआत के समय
ही देखने को
मिली, जब
सार्क के सभी
सदस्य देशों
के राष्ट्राध्यक्षों
और शासनाध्यक्षों
को लुटियन की
दिल्ली में
भव्य राष्ट्रपति
भवन के
प्रांगण में नरेन्द्र
भाई के शपथ
ग्रहण समारोह
में आमंत्रित
किया गया। बाद में
बतौर प्रधानमंत्री
अपनी आरंभिक
विदेश
यात्राओं के
लिए श्री मोदी
ने सार्क की
भावना में भूटान
और नेपाल को
चुना। नरेन्द्र
मोदी ने सदैव
श्री वाजपेयी
का बेहद सम्मान
किया है और
उन्हें अपना
आदर्श माना
है। वे कभी भी जीवित
किंवदंती बन
चुके इस महान
व्यक्तित्व
की सराहना करने
से नहीं
चूकते। 20 मई 2014 को
नवनिर्वाचित
भाजपा संसदीय
दल का सर्वसम्मत
नेता चुने
जाने के
ऐतिहासिक
अवसर पर संसद
के केन्द्रीय
कक्ष में उद्गार
व्यक्त
करते समय भी
नरेन्द्र
मोदी, प्रधानमंत्री
मोदी ने भी
जम्मू-कश्मीर
और लद्दाख की
जनता के प्रति
अपना गहरा स्नेह
प्रदर्शित
किया है और छह
महीने की
छोटी-सी अवधि
में भी उन्होंने
इन तीनों
क्षेत्रों के
कई दौरे किए
हैं। राज्य
में अपनी
चुनावी
रैलियों के
दौरान नरेन्द्र
मोदी ने जनता
से वादा किया
कि उनकी सरकार
अटल बिहारी
वाजपेयी का
सपना साकार
करेगी तथा
राज्य में इंसानियत,
जम्हूरियत
और कश्मीरियत
पर आधारित
शांति और
समृद्धि
लाएगी। राज्य की
यात्राओं के
दौरान श्री मोदी
ने सदैव इस
बात का उल्लेख
किया कि अटल
जी ने अपने तीन
सूत्री कश्मीर
सिद्धांत के
जरिए कश्मीरियों
के दिलों में
खास जगह बना
ली है और प्रत्येक
कश्मीरी
युवक में
बेहतर भविष्य
की उम्मीद
जगा दी है। उन्होंने
कहा - ''हमारा
मंत्र सिर्फ
विकास, विकास
और विकास है'' उन्होंने
कहा ''जम्मू-कश्मीर
का पूर्ण
विकास करके
मैं अपने
प्रति आपके भरोसे
को मैं सूद
सहित
लौटाउंगा।'' प्रधानमंत्री
मोदी ने राज्य
को भरोसा
दिलाया ''यह
मेरी कामना है
और मैं अटल जी
के सपने को
साकार करने के
लिए यहां
बार-बार
आउंगा।'' 25 दिसंबर
को अटल जी के
90वें जन्मदिन
को ''सुशासन
दिवस'' के रूप
में मनाने का
नरेन्द्र
मोदी सरकार का
यह फैसला
संभवत: उनकी
पार्टी की
युवा पीढ़ी की
ओर से कई
दशकों तक उनके
मित्र,
दार्शनिक एवं
मार्गदर्शक रहे
व्यक्तित्व
के लिए सबसे
उपयुक्त
भेंट है। |
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