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28/12/2014  
उपराष्ट्रपति ने चंडीगढ़ में सिख एजुकेशनल सोसायटी के प्लेटिनम जुबली समारोह को संबोधित किया
 

उपराष्ट्रपति मोहम्मद हामिद अंसारी ने कहा है कि सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक बदलाव के लिए शिक्षा सबसे अधिक महत्वपूर्ण साधन है। उन्होंने कहा कि प्रासंगिक ज्ञान, दृष्टिकोण और कौशल के साथ भली-भांति शिक्षित आबादी इस देश में आर्थिक और सामाजिक विकास के लिए अनिवार्य है। आज चंडीगढ़ में सिख एजुकेशनल सोसायटी के प्लेटिनम जुबली समारोह में उपराष्ट्रपति ने कहा कि सामाजिक-आर्थिक गतिशीलता के लिए शिक्षा सर्वाधिक शक्तिशाली औजार है तथा न्यायोचित एवं सही समाज के निर्माण के लिए प्रमुख साधन है।

उपराष्ट्रपति ने कहा कि शिक्षा आर्थिक बेहतरी के लिए कौशल एवं दक्षता उपलब्ध कराती है। शिक्षा शासन की प्रक्रिया में पूरी तरह से भागीदारी के लिए नागरिकों को आवश्यक साधन प्रदान कर लोकतंत्र को मजबूत बनाती है। उन्होंने कहा कि शिक्षा समाज में एकीकरण की शक्ति के रूप में कार्य करती है और ऐसे जीवन मूल्य प्रदान करती है जो सामाजिक भाइचारे एवं राष्ट्रीय पहचान को बढ़ावा देती है।

उपराष्ट्रपति ने कहा कि स्वतंत्रता के बाद हमने शिक्षा के क्षेत्र में महत्वपूर्ण प्रगति की है। साक्षरता 1951 में करीब 11 प्रतिशत से 2011 में 74 प्रतिशत हो गई है। प्राथमिक स्तर पर बच्चों के दाखिलों का स्तर सार्वभौम तक पहुंच गया है अर्थात अब इस आयु वर्ग में करीब-करीब सभी बच्चों के दाखिले हो रहे हैं। युवा साक्षरता दर 91 प्रतिशत और प्रौढ़ साक्षरता 74 प्रतिशत हो गई है। लड़की और लड़के की शिक्षा के बीच फासला कम हो गया है। आज भारत में दुनिया की तीसरी बड़ी उच्चतर शिक्षा प्रणाली है। हमारे यहां 652 विश्वविद्यालय और विश्वविद्यालय स्तर के संस्थान हैं जो उच्चतर एवं तकनीकी शिक्षा प्रदान करते हैं। उनके साथ 33,000 से अधिक महाविद्यालय एवं संस्थान संबद्ध हैं।

उपराष्ट्रपति ने कहा कि हाल के वर्षों में देश में उच्चतर शिक्षा में दाखिलों की संख्या में बहुत बढ़ोतरी हुई है जिसके फलस्वरूप महाविद्यालयों एवं विश्वविद्यालयों में भौतिक एवं अन्य बुनियादी ढांचे पर बोझ बढ़ा है। उन्होंने कहा कि हाल के वर्षों में निजी क्षेत्र की पहल ने उच्चतर शिक्षा की वृद्धि में योगदान दिया है। हालांकि उनमें से कुछ अपने चुनिंदा क्षेत्रों में उत्कृष्ट हैं लेकिन घटिया शिक्षा, शोषण एवं सामान्य खामियों के कारण कई अन्य चिंता का कारण भी हैं। इन संस्थानों के लिए प्रभावी विनियामक प्रणाली की जरूरत है ताकि उनका गुणता मूल्यांकन एवं विनियमन हो सके।

उपराष्ट्रपति ने कहा कि राष्ट्रीय विकास में शिक्षा के अत्यधिक महत्व के मद्देनजर हमें शिक्षा के विस्तार, शिक्षा की गुणता में सुधार और यह सुनिश्चित करने पर ध्यान देना है कि समाज के सभी वर्गों को शिक्षा के अवसर उपलब्ध हों। इसके लिए सरकार, निजी क्षेत्र और नागरिक समाज के संयुक्त प्रयासों की जरूरत होगी।

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