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24/05/2016  
दिल्ली के सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले 15 लाख बच्चों का भविष्य बर्बाद होने की कगार पर- विजेन्द्र गुप्ता
 

दिल्ली विधान सभा में नेता प्रतिपक्ष विजेन्द्र गुप्ता ने कहा है कि स्वयंसेवी संस्थाओं के सर्वेक्षण से दिल्ली सरकार के विद्यालयों की स्थिति के चौंकाने वाले तथ्य सामने आये हैं । सर्वे के अनुसार हकीकत यह है कि छठीं कक्षा से बारहवीं कक्षा के 87 प्रतिशत बच्चों ने बताया कि उनको स्कूलों में पढ़ाई न कराकर सफाई, हाजिरी लेने, चॉक डस्टर लाने, ब्लैक बोर्ड साफ करने आदि का कार्य शिक्षकगण कराते हैं।

बच्चों का कहना है कि प्रयोगशाला होने के बावजूद उन्हें प्रयोगशाला का उपयोग करने की इजाजत नहीं दी जाती। लायब्रेरी होती है लेकिन पुस्तकें पढ़ने को नहीं दी जाती। इसके अतिरिक्त अनेक असुविधाओं का सामना विद्यार्थियों को स्कूल जाने पर करना पड़ता है। 

सरकारी स्कूलों की सर्वेक्षण करके उपरोक्त आंकड़े शिक्षा के मुद्दे पर काम कर रहे संगठन नौजवान भारत सभा और जागरूक नागरिक मंच ने जारी किये हैं। इस स्थिति को भयावह बताते हुए श्री गुप्ता ने दिल्ली सरकार से मांग की है कि वह विज्ञापनों के द्वारा दिल्लीवासियों को भ्रमित न करे। उच्च न्यायालय के किसी न्यायाधीश की अध्यक्षता में समिति गठित करके दिल्ली के सभी सरकारी स्कूलों की 30 दिन के अंदर जांच करके उनकी असली दशा और दिशा पर श्वेत पत्र जारी करके मुख्यमंत्री जनता को बताये। इस समिति में किसी जाने माने शिक्षाविद् तथा नेता प्रतिपक्ष को भी शामिल किया जाए। 

उन्होंने बताया कि स्वयंसेवी संगठनों ने सर्वेंक्षण में पाया है कि बबाना, शाहाबाद दौलतपुर, शाहाबाद डेयरी, फूट खुर्द, रोहिणी सेक्टर 15, समयपुर, यमुना विहार, करावल नगर आदि क्षेत्रों के दशा बहुत दयनीय है। इसी कारण करावल नगर और यमुना विहार के सरकारी स्कूलों में नवीं और ग्यारहवीं कक्षा में बड़ी तादाद विद्यार्थी फेल हुएं हैं। 70 प्रतिशत बच्चों ने बताया कि वे स्कूलों की पढ़ाई से पूरी तरह असंतुष्ट है। शिक्षकों का व्यवहार उनके प्रति उपेक्षापूर्ण और पढ़ाई न कराने का होता है। अनेक शिक्षक स्कूल आते हैं और हाजिरी लगाकार या तो घर वापस लौट जाते हैं या मटरगश्ती करते हैं। 

स्कूलों में शिक्षक और छात्र का अनुपात नियमतः 1 ओर 35 का होना चाहिए लेकिन एक ही कक्षा में 150 से अधिक छात्र ठूसे जाते हैं। 68 प्रतिशत बच्चों ने बताया कि शौचालय उपयोग लायक नहीं हैं। पीने के पानी की उचित व्यवस्था नहीं है। 62 प्रतिशत बच्चों ने बताया कि स्कूलों में खेल-कूद के सामानों का आभाव है। स्कूलों की 30 प्रतिशत बैंचे टूटी हुई हैं। भवन खस्ताहाल हैं। शाहबाद डेयरी के उच्च माध्यमिक बाल कन्या विद्यालय का भवन किसी भी समय गिर सकता है। यह वही स्कूल है जहां गत वर्ष करंट लगने से एक बच्ची की मौत हो गयी थी तथा आठ बच्चियां झुलस गयी थीं। 

स्कूलों के प्रधानाचार्यों, शिक्षकों तथा अन्य स्टॉफ ने बताया कि सरकार उनसे समय-समय पर गैर शैक्षणिक कार्य करवाती है। इस कारण भी पढ़ाई लिखाई का कार्य अधूरा रह जाता है। शिक्षा विभाग का स्कूलों के स्टॉफ के साथ उपेक्षित व्यवहार लगातार बना रहता है। स्कूल तथा शिक्षा विभाग के बीच सार्थक संवाद का अभाव है। दिल्ली के सरकारी स्कूलों में लगभग 15 लाख बच्चे पढ़ते हैं। इन बच्चों का भविष्य बदहाल शिक्षा व्यवस्था के कारण बर्बाद होने की कगार पर है।   

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